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Banaras Hindu University. Panjab University.
(इस पुस्तक में पूरे भक्ति-काव्य को सामाजिक एतिहासिक परिप्र...)
इस पुस्तक में पूरे भक्ति-काव्य को सामाजिक एतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रदान किया गया है। यह एकदम नया प्रयास नहीं है लेकिन जिन तथ्यों और बिन्दुओं पर बल दिया गया है। और उन्हें जिस अनुपात में संयोजित किया गया है। - वह नया है। यह पुस्तक मीरा के काव्य पर केन्द्रित है लेकिन कबीर, सूर, तुलसी, जायसी, प्रसाद, महादेवी, मुक्तिबोध और रामानुज, रामानन्द, तिलक,गांधी की काव्य- स्मृतियों और विचार-संघर्ष में गूँथी सजीव अनुभूति की प्रस्तावना करती है। यानी अनुभूति एयर विचार का ऐसा प्रकाश - लोक जिसमें सभी अपनी विशेषताएँ कायम रखते हुए एक-दूसरे को आलोकित करते हैं। यह तभी संभव है जब हर विचार और हर अनुभव में अपने-अपने युगों के दुखों से रगड़ के निशान पहचान लिए जाएँ। भक्ति चिंतन और काव्य ने पहली बार अवर्ण और नारी के दुख में उस सार्थक मानवीय ऊर्जा को स्पष्ट रूप से पहचाना जिसमें वैयक्तिक और सामाजिक की द्वंदमयता सहज रूप में अंतर्निहित थी। मीरा की काव्यानुभूति का विश्लेषण करते हुए लेखक ने अनुभूति की उस द्वंदमयता का सटीक विश्लेषण किया है। यह पुस्तक अन केवल मीरा के काव्य के लिए अनिवार्य है ब्वालकी हिन्दी-साहित्य की आलोचनात्मक विवेक-परंपरा की एक सार्थक कसी भी है।
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Banaras Hindu University. Panjab University.
He has around 20 publications to his cr which include novels, memoirs and poetry collection.
(इस पुस्तक में पूरे भक्ति-काव्य को सामाजिक एतिहासिक परिप्र...)